If one were to make a comment on the security, safety of citizens in our country, a one liner would be - "सवारी अपने सामन की ख़ुद जिम्मेदार है " The government takes no responsibility for the same as it has its own global aspirations and pretensions, as commented in FORBES magazine by Tumku Varadarajan. Years back in school I learned a poem by श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' , the lines of which I still remember and keep quoting here and there; but now I think it is time that our political leadership gets back to learning the basics once again.
क्षमा, दया, तप,त्याग,मनोबल
सबका लिया सहारा,
पर नर - व्याघ्र सुयोधन तुमसे,
कहो,कहाँ,कब हारा
क्षमाशील हो रिपु समक्ष
तुम हुए विनत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो ,
उसका क्या जो दंतहीन,
विषहीन, विनीत सरल हो
तीन दिवस तक पथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे
बैठे पढ़ते रहे छंद
अनुनय के प्यारे प्यारे
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से ,
उठी धधक अधीर पौरुष की
आग राम के शर से
सिन्धु देह धर " त्राहि- त्राहि "
कहता आ गिरा चरण में ,
चरण पूज, दासता ग्रहण की
बंधा मूढ़ बंधन में
सच पूछो तो शर में ही
बसती है दीप्ती विनय की ,
संधि वचन संपूज्य उसी का,
जिस में शक्ति विजय की
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है
1 comment:
Well Said Ashwani!!
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